- 8 Posts
- 1 Comment
उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलश यादव की चर्चा इन दिनों देश भर में जोर-शोर से हो रही है। हो भी क्यों नहीं, उत्तर प्रदेश में बदलाव की जो हवा बह रही है, उसका श्रेय उन्हीं को तो जाता है। पर क्या यह सब कुछ इतना आसान था। इसे समझने से पहले कुछ पुरानी बातें याद करते हैं। 2000 में कन्नौज में उपचुनाव के दौरान गढ़े गए नारे ‘साइकिल का बटन दबा दो टीपू (अखिलेश यादव) को सुल्तान बना दो’ को याद कीजिए। संकेत साफ था कि जनता अखिलेश को सिर्फ लोकसभा का सांसद ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने का सपना तभी देखने लगी थी, लेकिन पार्टी के भीतर विरोध के भी कई अस्पष्ट स्वर थे, जो चुनावी शोर में कभी- कभार फुसफुसाहट की तरह सुनाई देने लगे थे। जून 2009 में जब अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी का उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया तो 2012 के विधानसभा चुनाव की आहट तेज हो चुकी थी। पांच साल से प्रदेश की सत्ता से बाहर रह रही समाजवादी पार्टी की जीत का रोडमैप बनाने के लिए अखिलेश के पास बहुत कम वक्त था और मुश्किलें भी कई थीं। इसके बावजूद उन्होंने लोगों को पार्टी से जोड़ने में कोई उतावलापन या जल्दबाजी नहीं दिखाई। यहां तक कि आलोचनाओं और मुश्किलों का भी स्वागत किया।
मशहूर प्रेस फोटोग्राफर सौमित्र घोष के हवाले से वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन अपनी पुस्तक ‘अखिलेश यादवः बदलाव की लहर’ में जिक्र करती हैं कि कैसे चुनाव के दौरान पार्टी के भीतर ही कुछ लोग अखिलेश की क्षमताओं पर सवालिया निशान उठा रहे थे। काफी दिनों तक ऐसी बातें सुनकर ऊब चुके सौमित्र ने जब ये सारी बातें अखिलेश को बताई तो उन्हें मुस्कुराते हुए बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा- आप चिंता न करें। चुनाव खत्म होने के बाद उन सबके विचार मेरे और पार्टी के बारे में बदल जाएंगे। बस इंतजार कीजिए और देखिए। चुनाव के वक्त मीडिया भी राहुल गांधी को अखिलेश के मुकाबले ज्यादा तबज्जो दे रही थी। लेकिन अखिलेश ने अकेले दम पर बाजी पलट दी।
अखिलेश यादव के करीबी बताते हैं, पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने व्यापक रूप से पार्टी की नीतियों, खामियों और सांगठनिक ढांचे का अध्ययन किया। पार्टी की खामियों के साथ-साथ उन मुद्दों की पहचान की, जो पार्टी के खिलाफ जाते थे। इसके बाद नए सिरे से पार्टी का संगठन तैयार किया गया, जिसमें जुझारू और जमीनी नेताओं को महत्व दिया गया। बड़े पैमाने पर युवाओं और छात्र संघ से निकले नेताओं को न केवल अखिलेश ने महत्व दिया बल्कि पार्टी में जिम्मेदारी भी दी। जिससे पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ। अखिलेश की नजर सूबे के डेढ़ करोड़ युवा मतदाताओं पर भी थी, जो पहली बार वोटर बने थे। इसके लिए सपा ने खास रणनीति के तहत अपने युवा संगठन को युवाओं पर ध्यान केंद्रित करने के काम में लगाया। पहली बार पार्टी के यूथ विंग को चुनाव में खासा महत्व मिला और चुनाव में वह पार्टी के मुख्य संगठन के समानान्तर काम करता रहा। यूथ विंग के पदाधिकारियों सहित 500 तेजतर्रार युवाओं की एक टीम तैयार की कई, जिसके हाथ में अखिलेश की जनसभाओं से लेकर चुनाव प्रचार की पूरी कमान थी।
दरअसल अखिलेश उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य को बदलना चाहते हैं। 2012 के चुनाव में ही यह दिखने लगा। उनकी कोशिश थी कि मतदाताओं की जाति-धर्म और संप्रदाय के आधार पर वोट देने की परपंरागत मानसिकता को बदल कर उसे विकास की तरफ उन्मुख किया जाए। इसके लिए उन्होंने अध्ययन किया और रणनीति बनाई। इसमें वे सफल भी रहे। सपा ने अपने पूरे चुनाव अभियान में विकास को ही केंद्र में रखा। अखिलेश की कड़ी मेहनत, कुशल रणनीति और चुनावी प्रबंधन ने हताश समाजवादी पार्टी को नंबर एक बनाकर खड़ा कर दिया। इसके बाद कन्नौज से टीपू को सुल्तान बनाने की निकली आवाज पूरे उत्तर प्रदेश में गूंजने लगी। जनता और समय की मांग को समझ कर अखिलेश की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर ताजपोशी की गई। पर अखिलेश की असली अग्नि परीक्षा अब शुरू होनी थी।
अखिलेश को एक मुख्यमंत्री के तौर पर बिगड़ी अर्थव्यवस्था और भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे विभाग मिले थे। माहौल इस कदर बिगड़े थे कोई विदेश क्या देश के भी निवेशकर्ता यूपी में बिजनेस करने को राजी नहीं थे। ऐसे में अखिलेश ने सूझबूझ के साथ काम शुरू किया। अफसरों को प्रेरित किया तो निवेशकों को प्रोत्साहित भी। उन्होंने उन हर सुझावों को सहज स्वीकार किया तो उत्तर प्रदेश की तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते है। वैसे अखिलेश ने इसकी तैयारियां पहले ही कर दी थीं। विधानसभा चुनाव के पहले ही उन्हें युवाओं को केंद्र में रखते हुए समाजवादी पार्टी का घोषणापत्र तैयार किया। 10वीं और 12वीं पास छात्र-छात्राओं को लैपटाप और बेरोजगारों को हर माह 1000 रुपये भत्ता देने का वादा किया। अपनी पहली की कैबिनेट मीटिंग में उन्होंने चुनाव में किए गए वादों पर अमल करना शुरू कर दिया। पर बिना कोई शोर-शराबा किए। सरकार बनने के बाद विकास की योजनाओं को प्राथमिकता दी। उत्तर प्रदेश के विकास का रोडमैप तैयार किया कि कैसे छोटे-छोटे निवेश के जरिए लोगों को बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक लाभ पहुंचाया जा सके।
मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने एक इंटरव्यू में कहा था- योजनाओं को अमली जामा पहनाने का काम दफ्तरों में होना है, सड़कों पर नहीं, तो फिर शोर मचाने का क्या मतलब है। मेरा एक सूत्रीय एजेंडा प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाना है। मैं चाहता हूं कि मेरा काम बोले। अखिलेश को करीब से जानने वाले लोग भी बताते है कि वह स्वभाव से विनम्र और कम बोलने वाले व्यक्ति हैं, लेकिन मौका पड़ने पर किस तरह लोगों को अपनी बातों से सहमत कराया जाए यह उन्हें बखूबी आता है और उनकी इन्हीं बातों का जादू 2012 में मतदाताओं के सर चढ़कर बोला। इस जादू के चलते ही आज यूपी की सत्ता उनके हाथों में है।
द इकोनामिस्ट को दिए गए एक इंटरव्यू में जब अखिलेश से पूछा गया कि क्या वे खुद को आधुनिकतावादी मानते हैं, तो अखिलेश ने इससे इंकार किया और खुद को परंपरावादी बताया। ऐसा परंपरावादी जिसके बाद पश्चिम का अनुभव और अंग्रेजी का ज्ञान है। हालांकि वे अंग्रेजी नहीं, बल्कि हिन्दी प्रेमी हैं। अपने साथियों से तो वे अच्छी अंग्रेजी में बात करते हैं, लेकिन जब सार्वजनिक तौर पर बोलने का मौका आता है तब वे हिन्दी को ही प्राथमिकता देते हैं और इतना ही नहीं किसी इंटरव्यू में अंग्रेजी में सवाल पूछे जाने पर भी वे जवाब हिन्दी में ही देना पसंद करते हैं।
अखिलेश ने अपनी प्राइमरी शिक्षा इटावा के सेंट मेरी स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने राजस्थान में धौलपुर के सैनिक स्कूल से अपनी आगे की पढ़ाई की। अपनी स्कूली पढ़ाई के बाद अखिलेश ने मैसूर के श्री जयचामाराजेंद्र कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से सिविल इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री हासिल की। बहुत कम लोगों मालूम है कि मशहूर गेंदबाज जवागल श्रीनाथ यहां अखिलेश के अच्छे दोस्तों में से शामिल थे। खैर, बीटेक की डिग्री के बाद अखिलेश एंवायरमेंट इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल करने ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी गए और महज इसी कारण लोग उन्हें फॉरेन एजुकेटेड कहते हैं जबकि उनकी अधिकांश पढ़ाई भारत में ही हुई है।
उच्च शिक्षित होने के कारण ही अखिलेश पढ़ाई के महत्व को समझ सके और उनकी पार्टी ने छात्रों को फ्री लैपटॉप और कंप्यूटर शिक्षा का आश्वासन दिया, जो उनकी जीत में काम भी आया। इसके साथ ही पर्यावरण को लेकर उनकी रुचि और रूझान ही था कि उत्तर प्रदेश में जब उन्होंने प्रगति का खाका खींचा तो साथ ही साथ पर्यावरण के संरक्षण का भी ख्याल रहा है। इसके चलते ही उत्तर प्रदेश में एक ही दिन में सर्वाधिक पौधे लगाने के लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है और अब इसी महीने वह पौधरोपण में अगला विश्व कीर्तिमान बनाने की तैयारी में जुटे हैं।
राजनेता होने के साथ साथ अखिलेश एक समाज सेवक, इंजीनियर और कृषि विशेषज्ञ भी हैं। इसके अलावा अखिलेश को फुटबॉल खेलना और साइकिलिंग करना भी पसंद है। श्री जयचामाराजेंद्र कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में अखिलेश एक फुटबॉल प्लेयर भी थे। खेलों में उनका यह जुड़ाव इस लिए भी है कि वह मानते हैं कि इससे लोगों पर परस्पर प्रेम और सकारात्मक प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ती हैं। इसी वजह से मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने खेलों और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने का काम किया।
साल 2000 में कन्नौज क्षेत्र से चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा में प्रवेश किया और तब से अब तक वे तीन बार लोकसभा के सदस्य चुने जा चुके हैं। अखिलेश युवाओं की आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु कार्य किया करते थे इसी बात ने उन्हें जात पात से भी परे रखा। जबकि 2012 में अपने 6 महीने के चुनाव प्रचार के दौरान अखिलेश 10,000 किमी से ज्यादा घूमे हैं जिनमें से लगभग 200 किमी का सफर उन्होंने साइकल से ही तय किया है। इसके साथ ही उन्होंने 800 से ज्यादा रैलियों का आयोजन किया है। अखिलेश में लीडरशिप की बेहतरीन क्वालिटी है जिस कारण लोग उनमें भविष्य के लीडर की छवि देखते हैं।
समाजवाद के सौरमंडल पर उभरे इस नए सितारे ने अपनी कार्य कुशलता से न सिर्फ विरोधियों को भी उनकी तारीफ करने पर मजबूर कर दिया हैं जबकि उत्तर प्रदेश में बदलाव की नई हवा को हवा दी है। इन सबके चलते अखिलेश आज बहुत से युवाओं के भी यूथ आइकन बन चुके हैं। अखिलेश के जीवन का फलसफा है कि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं, हम वो सब कर सकते है, जो हम सोच सकते हैं और हम वो सब सोच सकते हैं, जो आज तक हमने नहीं सोचा। यह सोच उनके कामकाज और व्यवहार में भी झलकती हैं। इसी उम्दा सोच की सराहना के साथ उत्तर हमारा अखिलेश यादव को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई देता है।
Read Comments