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‘सूरज बनना है तो पहले उसकी तरह जलना सीखो, तपना सीखो। लगन, ईमानदारी और परिश्रम से काम करने वालों को कोई रोक नहीं सकता है।’
– अखिलेश यादव, मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल भले ही अभी नहीं बजा है, लेकिन उसकी आहट ने दस्तक दे दी हैं। रोज ही नए समीकरण बन और बिगड़ रहे हैं, ऐसे में यह अनुमान लगाना भी कुछ असहज प्रतीत हो रहा है कि चुनाव आते-आते सत्ता का ऊंट आखिर किस करवट बैठेगा। सियासत का सरताज कौन होगा, यह तो वोट के माध्यम से जनता ही बता सकेगी, लेकिन हाल-फिलहाल में राजनीतिक दलों में चल रखी खलबली या यूं कहें बेचैनी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव की दस्तक से पहले ही यहां की राजनीति को रोचक बना दिया है। ऐसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में ऐसा राजनीतिक घमासान पहली बार हो रही है। फिर भी इस बात इन सभी बातों से एक बात अलग नजर आ रही है। सत्ताधारी पार्टी जहां पिछले चार साल के दौरान उत्तर प्रदेश में किए गए विकास के मुद्दों को जनता के बीच उठा रही है, वहीं विकास की बात करने वाली भाजपा इस पर चर्चा करने से भी भाग रही है। उल्टा एक बार फिर धार्मिक धु्रवीकरण के प्रयासों में जुटी है। दूसरी ओर बसपा में असमंजस की स्थिति नजर आ रही है। एक के बाद एक उसके सिपहसलार पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। ये सारी बातें बेवजह नहीं हैं, दरअसल पिछले चार साल में अखिलेश यादव के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में जिस तरह से विकास कार्य हुए हैं उससे दूसरी पार्टियों के पास आने वाले चुनाव में मुद्दों का अकाल हो गया है। वहीं नेतृत्व के मामले में भी अखिलेश यादव एक कर्मठी, दूरदृष्ठा और तरक्की पसंद नेता के तौर पर उभरे हैं। जबकि इसके विपरीत दूसरे दलों के पास ऐसा नेतृत्व नजर नहीं आता है। हां बसपा में जरूर मायवती नेता हैं, लेकिन उनकी पिछली सरकार में हुए भ्रष्टाचार और हाल-फिलहाल में पार्टी के अंदर मचे घमसान से उनके पास भी चुनाव को लेकर कोई ठोस एजेंडा नजर नहीं आ रहा है।
कामकाज की बात करें तो अखिलेश यादव मोदी और माया से कही आगे हैं। बुनियादी तौर पर देखा जाए तो अखिलेश सरकार द्वारा कराए गए कामकाज ने प्रदेश की छवि को बदलने का काम किया है। जो लोग इस पर सवाल जवाब करते हैं आखिर में उनकी भी राय अखिलेश के पक्ष में ही होती है। अमूमन सत्ताधारी पार्टियों के खिलाफ विरोध की लहर होती है, लेकिन यदि ध्यान दिया जाए तो अखिलेश यादव के खिलाफ जनता में विरोध का कोई फैक्टर भी काम करता नजर नहीं आ रहा है। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का जन सरोकारों से जुड़ा काम और बेदाग व बेहद शालीन व्यक्तित्व है। यही वजह है कि विपक्षी भी उनकी तारीफ करते हैं। तो कार्यशैली को लेकर उनकी सकारात्मक सोच ने भी उत्तर प्रदेश की जनता में अखिलेश यादव को सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित किया है।
देश के सबसे बड़े राज्य के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सत्ता की बागडोर संभालने के बाद से ही न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया भर से आई सलाह का ईमानदारी से पालन किया। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के पुत्र और उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने उन्हें सलाह दी थी कि अगर वे उत्तर प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं तो सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी माॅडल अपनाएं। आज उत्तर प्रदेश में पीपीपी माॅडल पर सर्वाधिक निवेश हो रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन अपनी किताब ‘अखिलेश यादवः बदलाव की लहर’ में अखिलेश यादव की सोच का जिक्र करती हैं। अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही महीने बाद अपनी मुलाकात का जिक्र करते हुए वह लिखती हैं- उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालते ही अखिलेश यादव की हर गतिविधि को बारीकी से देखा जा रहा था। मुझे याद है मुख्यमंत्री बनने के बाद जब पहली बार मैं उनसे मिली तो उन्होंने कहा था ‘मेरा एकसूत्रीय एजेंडा राज्य को विकास के पथ पर ले जाना है। मैं चाहता हूं कि मेरा काम बोले। चाहे मैं रहूं या न रहूं, लेकिन आने वाले समय में विकास का काम जारी रहे।’
ये अखिलेश यादव के दिल से निकली बात थी, जो पिछले चार साल में ही उन्होंने कर दिखाया है और उनके कहे अनुसार ही यूपी में विकास अनवरत जारी है। चुनाव के दौरान युवाओं के लिए किए गए वादों उत्तर प्रदेश में बुनियादी ढांचागत विकास परियोजनाओं को सफलतापूर्वक पूरा करना, आईटी क्षेत्र में विकास और समग्र औद्योगिक विकास सहित तमाम फ्रंट पर यूपी में उन्हें ऐसे काम किए, जो अभी तक नहीं हुआ। माहौल सकारात्मक हुआ तो उद्योग लगने लगे, निवेश आने लगे है। नतीजा भी दिखने लगा है।
राज्य की आर्थिक वृद्धि दर एवं प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी हुई। उत्तर प्रदेश की ग्रामीण एवं नगरीय अर्थव्यवस्था ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की। यूपी का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) 2012-13 की तुलना में पिछले वित्त वर्ष में 2.7 ऊंचा रहा। 2012-13 में प्रदेश की जीएसडीपी वृद्धि दर जहां 3.9 फीसदी थी, वहीं यह 2015-16 में बढ़कर 6.6 हो गई। वहीं शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद (एनएसडीपी) में भी प्रभावकारी सुधार हुआ है। 2012-13 में प्रदेश की एनएसडीपी वृद्धि 3.7 फीसदी थी, जो 2015-16 में बढ़कर 6.5 हो गई। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि हासिल की गई है। मार्च 2016 में समाप्त पिछले वित्त वर्ष में प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 48,584 रुपये रही जो 2012-13 में 35,358 रुपये ही थी। इससे जाहिर है कि अखिलेश सरकार की विकास परियोजनाओं का असर अब राज्य की अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है।
इकोनाॅमिस्ट पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने कहा था, ‘एक मुख्यमंत्री के तौर पर आपको उन लोगों की बात सुननी चाहिए जो आपके फैसलों से प्रभावित हो रहे हैं। मेरा मानना है कि अगर योजनाओं को जनता पसंद नहीं करती तो, हमें उन्हें वापस लेने का साहस होना चाहिए। गलत फैसलों पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।’ ये शब्द अखिलेश यादव के व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं। वैसे अखिलेश के सजग कार्यों की एक लम्बी चौड़ी लिस्ट है, जिसकी तारीफ न केवल प्रदेश में, बल्कि देश और विदेश की संस्थाओं में भी हो रही हैं।
अखिलेश यादव फिलहाल यूपी के विकास कार्यों पर ध्यान टिकाए हुए हैं और वह अपनी किसी भी सभा में ताल ठोककर कहते हैं कि विकास के मामले में यूपी को अब कोई आँख भी नहीं दिखा सकता है। आज यूपी में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेदान्ता मेडिसिटी से लेकर आईटी सिटी, अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम, मेट्रो से लेकर साईकिल ट्रैक सब कुछ बन गया है। इसके अलावा महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए वुमेन हेल्पलाईन 1090, आशा ज्योति 181 जैसी सुवाधाओं की भी देश में तारीफ हो रही है। इसका मतलब ये हुआ की यूपी बदलाव की राह पर तेजी से अग्रसर है और ये सब बातें ही सीएम अखिलेश की सबसे मजबूत ताकत है। जबकि ये ही बातें विपक्ष को कमजोर बना रही हैं।
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